Wednesday, June 19, 2013

जब घर से निकला था
खेल रही थी पानी से,
मुझे देख कर मुसकाई
हाथ हिलाया बेध्यानी से।
रात गए जब घर लौटा उसको
सोता पाया।
हो सकता है जगे जान कर
मुझको आया।
दिन में बात हुई थी
बहुत कुछ लाना था
सोते से जगा कर
सब कुछ दिखलाना था।
किंतु न लाया कुछ भी
सोचा ला दूँगा,
रोज-रोज की बात है कुछ भी
समझा दूँगा।
अभी जगी है पूछ रही है
आए पापा,
जो जो मैंने मँगवाया था
लाए पापा।
निकला हूँ कंधे पर उसको
बैठा कर
दिलाना ही होगा सब कुछ
दुकान पर ले जाकर।
यह हरजाना है
भरना ही होगा,
बिटिया जो भी कहे
करना ही होगा।

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