इन्तजार कविता का !
निकलने लगा है
सूरज
धीरे-धीरे
कोहरे की ओट से
दिन ने भी
शुरू कर दी है
कदम ताल के साथ
अपनी परेड
शाम भी
चिडियो के प॑खो पर बैठ
जाने लगी है
घर
रात की चादर पर बैठ
तारे भी करने लगे है
एक दूसरे की
चुगलिया !
चा॑द भी
उतर रहा है
चा॑दनी के साथ
एक एक सीढी
छत पर
टहलने !
सब कुछ
लॊटने लगा है
पटरी पर
धीरे-धीरे !
लेकिन
अभी भी
शब्द पडे है
घायल
लहू लुहान
ऒर
कविता बैठ कर
सिरहाने
कर रही है
इन्तजार
शायद अभी
लगेगा कुछ ऒर वक्त
शब्दो को
खडे होने मे !
2.
तुम तो थी...
मेरा..
पहला-पहला
प्यार
फ़िर भी
तुम्हे
ब्याह ना सका !
तुम
कहा
करती थी
हमेशा
....कुछ ऒर समर्पण
....कुछ ऒर त्याग
...कुछ ऒर विश्वास
....शायद ऒर कीमत भी
सब कुछ
सम्भव था
मेरे लिये
..समर्पण,त्याग
ऒर
शायद
कीमत भी
लेकिन
डग-मगा गया
थोडा सा..
विश्वास
कि
बन पाओगी
तुम
चिर-स॑गिनी मेरी
....चल पाओगी
तुम
गल-बहिया डाले
ऊबड-खाबड रास्ते से
होते हुए
उस
शिखर तक
जहा॑
टिम-टिमा रहा है
कोई दिया !
ऒर
इसी
अस-म॑जस की
देहरी पर
बैठा छोड
तुम्हे
निकल आया
दूर
नितान्त अकेला !
ना-मालूम
तुमने
दे दिया हो कोई
अभिशाप
आजन्म
कुवारे-पन का !
या फ़िर...
तुम
बैठी हो
आज भी
उसी असम॑जस
की देहरी पर
अपनी
अश्रु-पूरित
आ॑खो मे
इन्तिजार लिये
कि
मै
लॊटूगा
एक दिन
अपने
प्रथम प्यार की
खातिर !
हे मेरे
प्रथम प्यार
हे मेरी
कविता
देखो
लॊट रहा हू॑
मै..
वक्त के कोख से जन्मे
सारे अवरोधो को
तोड्ता हुआ
तेरे पास
भूल जा सारी
पीडा
पोछ दे सारे
आ॑सू
आजा मेरे
आलिगन मे
मै दूगा तुझे
अपना नाम
रचाऊगा तुझसे
ब्याह
ले चलूगा
विदा करा
कही दूर...
एक अलग ही
स॑सार मे
जहा॑ करेगे हम
ढेर सारा
प्यार
ढेर सारा
अभिसार..
ऒर
जनेगे तेरे
ढेर सारे
प्रतिरूप !
निकलने लगा है
सूरज
धीरे-धीरे
कोहरे की ओट से
दिन ने भी
शुरू कर दी है
कदम ताल के साथ
अपनी परेड
शाम भी
चिडियो के प॑खो पर बैठ
जाने लगी है
घर
रात की चादर पर बैठ
तारे भी करने लगे है
एक दूसरे की
चुगलिया !
चा॑द भी
उतर रहा है
चा॑दनी के साथ
एक एक सीढी
छत पर
टहलने !
सब कुछ
लॊटने लगा है
पटरी पर
धीरे-धीरे !
लेकिन
अभी भी
शब्द पडे है
घायल
लहू लुहान
ऒर
कविता बैठ कर
सिरहाने
कर रही है
इन्तजार
शायद अभी
लगेगा कुछ ऒर वक्त
शब्दो को
खडे होने मे !
2.
तुम तो थी...
मेरा..
पहला-पहला
प्यार
फ़िर भी
तुम्हे
ब्याह ना सका !
तुम
कहा
करती थी
हमेशा
....कुछ ऒर समर्पण
....कुछ ऒर त्याग
...कुछ ऒर विश्वास
....शायद ऒर कीमत भी
सब कुछ
सम्भव था
मेरे लिये
..समर्पण,त्याग
ऒर
शायद
कीमत भी
लेकिन
डग-मगा गया
थोडा सा..
विश्वास
कि
बन पाओगी
तुम
चिर-स॑गिनी मेरी
....चल पाओगी
तुम
गल-बहिया डाले
ऊबड-खाबड रास्ते से
होते हुए
उस
शिखर तक
जहा॑
टिम-टिमा रहा है
कोई दिया !
ऒर
इसी
अस-म॑जस की
देहरी पर
बैठा छोड
तुम्हे
निकल आया
दूर
नितान्त अकेला !
ना-मालूम
तुमने
दे दिया हो कोई
अभिशाप
आजन्म
कुवारे-पन का !
या फ़िर...
तुम
बैठी हो
आज भी
उसी असम॑जस
की देहरी पर
अपनी
अश्रु-पूरित
आ॑खो मे
इन्तिजार लिये
कि
मै
लॊटूगा
एक दिन
अपने
प्रथम प्यार की
खातिर !
हे मेरे
प्रथम प्यार
हे मेरी
कविता
देखो
लॊट रहा हू॑
मै..
वक्त के कोख से जन्मे
सारे अवरोधो को
तोड्ता हुआ
तेरे पास
भूल जा सारी
पीडा
पोछ दे सारे
आ॑सू
आजा मेरे
आलिगन मे
मै दूगा तुझे
अपना नाम
रचाऊगा तुझसे
ब्याह
ले चलूगा
विदा करा
कही दूर...
एक अलग ही
स॑सार मे
जहा॑ करेगे हम
ढेर सारा
प्यार
ढेर सारा
अभिसार..
ऒर
जनेगे तेरे
ढेर सारे
प्रतिरूप !
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