Tuesday, May 22, 2012

kavita RAJASTHAN ri

1.
धुर्र

बिन हाथ लगाया दरद जाणग्या
परची मोटी करी तय्यार
जाँच कराई बार लेब सूँ
रपट पढी ना एक भी बार
सात-आठ एक गोळ्याँ लिख दी
पीवण री शीश्याँ दी चार
ठीक हुयो तो महिमा थाँरी
मरग्यो तो मालिक री मार
अजब लगावो मजमो थाँरी धुर्र बोलूँ
थाँने डाकटर बतळाऊँ या मदारी बोलूँ

2.
कुण जाणे किण टेम बदल्ज्या,
कोड़ी एक छदाम रो ,
मन घोड़ो बिना लगाम रो,

काया ने घर में पटक झटक, घूमै मौजी असमाना में ,
... कुबदी लाखों उत्पात करे, सूतै रे धरज्या कानां में,
महं ढूंढूं बाग़ बगीचा में, ओ छाने राख़ मसाणां में,
हैरान करे काया कल्पे, लाधै नी पलक ठिकाणा में ,
दोड़े हङबङ दङबङ करतो,
है भूखो ख़ाली नाम रो,
मन घोड़ो बिना लगाम रो
3.
कान्यां रे मान्या कुर्र
चालो जोधपुर
जोधपुर का कबूतरां रे उड़ता फुर्र फुर्र !
रै भाई झालर बाजी हुर्र
कान्या रे मान्या
मान्या रे कान्यां कुर्र
मोटर चाली घुर्र
लारै गिँडकड़ा घुर्र
म्हारै लाल नै
दूध पियाऊं गर मर मर्र
रै झालर बाजी झुर्र
कान्या रे मान्या
मान्या रे कान्या कुर्र !

4.
prem ro parwat, roop ro jharno
chokho lagai, athai thaharno!
katil aankhyan, bojhal saansaa
khud par hee sharmano marno!
meghaan rai kheene aanchal me
chandarle ro lukano-chipano!
jhurmut me mhe aankhyan me the
baat-baat par roothno-manano!
ek nasho hai aa pritadlee
jo naa sikhyo kadai utarno!
Ratan Jain, Parihara


5.
राजस्थान री, रहियां राजस्थान।
राजस्थानी रै बिना, थोथो मान 'गुमान'॥
आढो दुरसौ अखौ, ठाढ़ा कवि टणकेल।
भासा बिना न पांगरै, साहित वाळी बेल॥
पीथल बीकाणै पुर्णा, जाणै सकल जिहान।
पातल नै पत्री पठा, गहर करायौ ग्यान॥
सबद बाण पीथल लगै, मन महाराणा मोद।
अकबर दल आयो अड़ण, हलदी घाट सीसोद॥
धर बांकी बांका अनड़, वांका नर अर नार।
इण धरती रा ऊपना, प्रिथमी रा सिंणगार॥
धन धरती धन ध्रंगड़ो, धन धन धणी धिणाप।
धन मारु धर धींगड़ा, जपै जगत ज्यां जाप॥
रचदे मेहंदी राचणी, नायण रण मुख नाह।
जीतां जंग बधावस्यां, ढहियां तन संग दाह॥
नरपुर लग निभवै नहीं, आज काल री प्रीत।
सुरपुर तक पाळी सखी, प्रेम तणी प्रतीत॥
मायड़ भासा मान सूं, प्रांत तणी पहिचांण।
भासा में ईज मिलैह, आण काण ऒळखांण॥
मायड़ भासा जाण बिण, गूंगो ग्यान 'गुमान'।
तीजा गवरा होळीका, हुवै प्रांत पहिचांन॥
भाइ बीज राखी बंधण, गीत भात अर बान।
बनौ विन्याक कामण्या, विण भासा न बखान॥


6.मानसरोवर सूं उड़ हंसौ, मरुथळ मांही आयौ
धोरां री धरती नै पंछी, देख-देख चकरायौ

धूळ उड़ै अर लूंवा बाजै, आ धरती अणजाणी
वन-विरछां री बात न पूछौ, ना पिवण नै पाणी

दूर नीम री डाळी माथै, मोर निजर में आयौ,
हंसौ उड़कर गयौ मोर नै, मन रौ भेद बतायौ

अरे बावळा, अठै पड़्यौ क्यूं, बिरथा जलम गमावै
मानसरोवर चाल’र भाया, क्यूं ना सुख सरसावै

मोती-वरणौ निरमळ पाणी, अर विरछां री छाया
रोम-रोम नै तिरपत करसी, वनदेवी री माया

साची थारी बात सुरंगी, सुण सरसावै काया
जलम-भोम सगळा नै सुगणी, प्यारी लागै भाया

मरुधर रौ रस ना जाणै थूं, मानसरोवर वासी
ऊंडै पाणी रौ गुण न्यारौ, भोळा वचन-विलासी

दूजी डाळी बैठ्यौ विखधर, निजर हंस रै आयौ
सांप-सांप करतौ उड़ चाल्यौ, अंबर में घबरायौ

मोर उतावळ करी सांप पर, करड़ी चूंच चलाई
विखधर री सगळी काया नै, टुकड़ा कर गटकाई

अब हंस नै ठाह पड़ी आ, मोरां सूं मतवाळी
मानसरोवर सूं हद ऊंची, धरती धोरां वाळी

No comments:

Post a Comment